महिलाओं पर अत्यचार हिन्दू धर्म का अधिकार

हिलाओं पर अत्यचार हिन्दू धर्म का अधिकार भाग:१ आइये देखते हैं हिन्दू धर्म ग्रंथ महिलाओं के बारे में क्या कहते क्या हैं। खैर… ‘सरस्वती’ जिसे हिन्दू ज्ञान की देवी कहते हैं उसके बारे में एक हिन्दू का लिखा यह श्लोक मिला: वामकुचनिहित वीणाम। वरदां संगीत मातृकां वंदे। अथार्त्: बायें स्तन(boobs) पर वीणा टिकाये हुए संगीत की देवी वंदना करती है। दिलचस्पी बढी तो काली महात्म्य को भी पढा। वहां लिखा गया है: घोरदंष्ट्रा करालास्या पीनोन्नतपयोधरा। महाकालेन च समं विपरीतरतातुरा। कच कुचचिबुकाग्रे पाणिषु व्यापितेषु। प्रथम जलाधि-पुत्री-संगमे नंग धाग्नि। ग्रथित निविडनीवी ग्रन्थिनिर्मोंचनार्थं चतुरधिक कराशः पातु न श्चक्रमाणि। अथार्त्: लक्ष्मी के साथ चतुर्भुज भगवान् का प्रथम संगम (sex) हो रहा है। उनके चारों हाथ फंसे हुए हैं। दो लक्ष्मी के स्तनों (boobs) में, एक केश में, एक ठोढ़ी (lip) में। अब नीवी (साड़ी की गाँठ खोलें तो कैसे? इस काम के लिये एडीशनल हैंड (अतिरिक्त हाथ) चाहने वाले विष्णु भगवान् हम लोगों की रक्षा करें। “या देवी सर्वभूतेषु…” मंत्र से दुर्गा का पूजन प्रारंभ करता है हिन्दू समाज। यह वही समाज है जो ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ का डंका पीटकर हिन्दू धर्म और संस्कृति पर गर्व से घोषणा करता हैं कि हमारे धर्म-शास्त्रों में स्त्री को देवी का रूप मानकर उसकी पूजा करने का प्रावधान है। यह श्लोक मनुस्मृति के तीसरे अध्याय के छप्पनवें श्लोक की पहली पंक्ति हैं। संभव है कि कोई भी व्यक्ति इस श्लोकांश के आधे-अधुरे मतलब को सच मान हिन्दू धर्म के तथाकथित नारी के प्रति सम्मान से मोहित हो जाय लेकिन इस श्लोक को यदि श्लोक संख्या ५४ और ५५ के साथ पढ़ा जाये तो स्पष्ट होगा कि ‘पूजा’ का आशय विवाह में दिया जाने वाला स्त्री धन है और मनु ने इससे दहेज प्रथा की शुरुआत की थी। वैदिक युग में राजा ब्राह्म्णों को गाय के साथ कन्यादान भी करता था। इसके अनेक प्रमाण हिन्दू धर्म ग्रंथों में मिल जायेंगे।

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