नियोग( एक कलंक )
मेरे नॉन मुस्लिम और मुस्लिम भाइयो ले लिए एक लेख थोड़ा बड़ा हो सकता है , काफी महत्वपूर्ण है !
* आज-कल एक मुद्दा काफी चर्चे में है , तलाक़ और हलाला जिसके बारे में कुछ समझता नही या फिर समझना नही चाहते बरहाल कोई मसला नही।
* अगर तलाक़ देना इतना ही आसान होता तो तीन बार बोलने की जरूरत पेश नही आती, एक बार बोलने से हो जाता, बरहाल कोई मसला नही इस्लाम विरोधी को कोई ना कोई मुद्दा चाहिए। इस मसले पर काफी उलमा, मुफ़्ती ने बड़े डिटेल में समझा चुके है।मुझे लगता नही की यह मसला बयान करने का कोई फायदा है, क्योंकि भैस के आगे बिन भजा कर कोई फायदा नही।
* अब सीधा मुद्दे पर आता हूं।
* हिंदूइस्म में एक प्रथा है, जिसको नियोग कहते हैं। जिसका जिक्र वेदों, मनु और कई सारी धार्मिक पुस्तकों में है।
* जिसमे से यहाँ पर चंद पेश करने की कोशिश करूंगा। अगर किसी भी व्यक्ति को इसमें भी शक हो खुद प्रमाण चेक करें या इसके बारे मे अपने धार्मिक विद्वानों से पूछे।क्योंकि समझदार की पहचान यह है,की वो दुसरो की बाते सुनकर उस बात पर आंख बंद कर के विश्वास ना करे बल्कि खुद तहक़ीक़ करे। बरहाल चेक जरूर करे।
* ऋग्वेदादीभाष्यभूमिक 21 विषय - नियोग विषय पेज न :- 261-266 में दयानन्द सरस्वती वेदों के जरिये से लिखते है ।
* स्त्री के लिए भी आज्ञा है, की जब किसी पुरूष की स्त्री मर जाय और संतानउत्पत्ति किया चाहे, तब स्त्री भी उस पुरुष के साथ नियोग ( यानी आज कल की भाषा कह सकते है नाजायज़ संबंध) करके उसको प्रजा युक्त कर दे।(ऐसी औलादों को आज कल हरामी की ओलाद कहा जाता है। बात बुरी लगे तो माफी चाहता हूँ)
इसलिए मैं (वैदिक ईशवर) आज्ञा देता हूं, की तू मन, कर्म और शरीर से व्यभिचार कभी मत करो, किंतु धर्मपूर्वक विवाह और नियाग से संतानउतपन्न करते रहो।( वाह क्या ज्ञान है।)
* यह नियोग शिषट पुरुषों कि सम्मति और दोनों की प्रसन्नता से हो सकता है।( दोनों की मर्जी से जीना जायज़ हो गया इंदुइसम में वाह क्या बात है । )
* हे स्त्री ! अपने मूर्तक पति को छोड़ के इस जीवनलोक मे जो तेरी इच्छा हो,तो दूसरे पुरुषों के साथ नियोग करके संतानों प्रप्त कर।
* वैदिक ईशवर मनुष्यों को आज्ञा देता है, की हे इंद्र पते ! तू इस स्त्री को वीर्यदान दे (समझदार को इशारा काफी है।)के सुपुत्र और सौ भाग्ययुक्त कर। पुरुष के प्रति वेद की यह आज्ञा है कि इस विवाहित वा नियोजित स्त्री में 10 बच्चे उत्पन्न कर । अधिक नही (तो क्या ? पूरी फ़ौज पैदा करुंगे बस 10 काफी है ) और हे स्त्री ! तू नियोग 11 पति तक कर अर्थात एक तो उसमे प्रथम विवाहित पति है और 10 प्रयत्न पति कर कर अधिक नही। (तो क्या पुरो के साथ नियोग करुंगे क्या।)
बड़े-बड़े वीर पुरूष को उतपन्न कर।
( नियोग से कई बड़े-बड़े माह पुरूष पैदा हुए है जिसमे से कुछ नाम आप भी जानते होंगे कर्ण, परशुराम इत्यादि
) तो देवर की कामना करने वाली है, तो तेरा पति विवाहित पति ने राहे या वह रोगी हो या नपुंसक हो जाये तब दूसरे पति के साथ नियोग के जरिये संतान उत्पन्न कर। (वहा पति बीमार पढा है और पत्नी देवर के साथ मजे ले बहुत खूब)
* देवर की परिभाषा हिंदूइस्म में।
* जैसे विधवा स्त्री देवर के साथ संतानोत्पत्ति करती है वैसे तुम भी करो। (यहा पर ऐसी घटिया शिक्षा दी जा रही है) विधवा का दूसरा पति होता है उसको देवर कहते है।(मतलब वहा पर उसका पति मरा नही की उस स्त्री पर देवर का हक़ हो जाता है वह कितनी अच्छी शिक्षा है। ये है हिंदूइस्म में औरोतो की इजजात बहुत खूब)
* हे स्त्री जीवित पति को लक्षय करके उठ खड़ी हो(यहा पर देवर,पंडित,ऋषि मुनि, इत्यदि की बात हो रही है।)मर्त्य इस पति के पास क्यों पड़ी है, आ हाथ ग्रहण करने वाले नियुक्त इस पति के साथ संतान जनने को लक्षय में रखकर संबंध कर।(नियोग कर) (
ऋग्वेद 10:18:8)
* ऋग्वेद 10:10 में जो एक जुड़वा भाई - बहन की कहानी थी (यम-यमी) उनको दयानद सरस्वती ने पति-पत्नी बनाया दिया । बरहाल ऋग्वेद 10:10 में भी पूरा नियोग का बयान है।
*NOTE :- कहते है, की वेद मानव उत्पति के साथ ही आगे थे ऋषि मुनियों को मिल गए ते और उस वक्क्त केवल आर्य ही थे, तो क्या ये कहानी अंतरिक्ष मे हो रही थी क्या ? क्योंकि जो चीज़ हो जाती है,यानी इतिहास बन जाती है (भूतकाल हो जाता है) उसीको लिखा और सुनाया जाता है।
* हे वीर्यसेचन हारे शक्तिशाली वर ! सौभाग्यशाली इस वधु को तू उत्तम पुत्रो वाली कर इसमे 10 पुत्रो को पैदा कर 11 तुझ पति को कर ।(11 पति तुही मेरा बच्चा बन जा)
* 10 बच्चे पैदा करने की बात ,वहां क्या कानून है ! और कहते है जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करो सब से पहले यह मंत्र को वेदों से निकल दो फिर ये विषय मे चर्चा करेंगे।
* नियोग विषय के बारे में अथर्वेद(18:3:1,2,3)
*मनुस्मृति में अध्ययन (9:59,60,61,62) में विस्तार पूर्वक लिखा है।
*इससे यह अच्छा ना होता कि एक विधवा जो बेचारी उसका पुनर्विवाह कार देते जिससे उसकी संतान की इच्छा भी पूरी हो जाती और उसको पति का सहारा भी मिल जाता बरहाल कोई मसला नही।
* आज विधवाओं का जो शोषण हो रहा है आश्रमों में उसके बारे में कोई बात नही करना चाहता। ना मीडिया किसको देखा रही है ना ही कोई व्यक्ति ध्यान इधर है खुद के घर मे अंधेरा है, और दुसरो के घर मे उजाला करने की कोशिश कर रहे है। बल्कि वहाँ पहले से ही उजाला है।
(समझदारों को इशारा काफी है)
* पुर्नविवाह के मसले पर दयानंद सरस्वती अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश के (4 समुलास पुर्नविवाह के विषय) में अपना इल्म का फन दिखाते हुए लिखता है।
* पुर्नविवाह से स्त्रीवर्ता और पुरष्वर्त का नष्ट होता है। (मतलब स्त्री और पुरूष का प्यार जो पहले मारने से पहले था उसे धोखेबाजी हो जाती है।)
* और नियोग के नाम पर बलत्कार चलता है।
* नियोग के लिए सबसे पहले ऋषि मुनि, पंडित,बृह्मचर्य को चुना जाता है।
* पंडित , जोगी, मजे लेते है और खुद को बृह्मचर्य कहलाते है।
* अपने कभी ना कभी सुना होगा कि स्त्री को ऋषि मुनि ने वरदान दी और संतान मिल गई । या कोई चीज़ खाने को दिया थी । ये सब नियोग का नतीजा होता है।
* सूर्य से पुत्र हुआ, आम की चिरी देने से पुत्र हुआ , नहाते - नहाते शरीर के मेल से पुत्र हुआ, अंशु पीने से पुत्र हुआ इत्यादि ये सब नियोग काही नतीजा है।
* (मातृ योनि) किसी-किसी श्लोक में तो ऐसा लिखा है, की माता को छोड़ के सब स्त्रियों से मैथुन कर लेवे,इसमे कोई दोष नही। और किसी का यह भी मत है कि माता को भी न छोड़े।(छिई) और किसी मे लिखा है कि योनि में लीड (मनी) प्रवेश करके आलस्य छोड़कर मंत्र को जपे तो वह शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।(मनी जल्दी ठहर जाता हैं) ये सब बाते पुराण में लिखी है।
* जो आज - कल देखते या सुनते रहते है कि फला जोगी ने ये कर दिया xyz
* उदहारण
.. आसाराम, रामरहीम, इत्यादि बेचारे वेदों और अन्य धार्मिक पुस्तकों पर में लिखा है उस पर चले रहे थे नाकि कोई गुनाह कीया( खा म खा) बल्तकारी बोल के उनको बदनाम कर दिया।😢
* पुर्नविवाह के विषय दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश या कह लीजिए चुत्यर्थ प्रकाश क्यों कि उस किताब में चुतिया पन्ति के अलावा कुछ नही है। बरहाल 4 समुलास में पुर्नविवाह और नियोग के विषय मे इतनी गंदी सोच रखने वाले दयानद सरस्वती की किताब पढ़के मानव जाति का सार शर्म से नीचे झुक जाता है।
*और भी कई बाते है वेदों में और हिन्दुइस्म की धार्मिक पुस्तकों में।
* इस लेख का मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही बल्कि उन इस्लाम विरोधी को जवाब देना है जो खुद की धार्मिक गर्न्थो की मान्यता को नही जानते और इस्लाम और मुसलमानों के ऊपर तानाकाशी करते है।
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